I have penned down my thoughts on the current situation around the world (specifically in India) due to COVID-19 pandemic. Sharing it with you in the form of a Poetry (named – “शंकट की ये घड़ी”). Hope you will find this positive in some ways.

I am sure we all are fighting and we will. Keeping in mind, this too, shall pass.

शंकट की ये घड़ी

चारों तरफ इक शोर है, हर दिल में इक खौफ है ।
हर तरफ है अँधेरा, अपने भी अपनों से दूर है ।।

मन में इक तूफान सा है, चारों तरफ है छाया सन्नाटा ।
कल किसका अंत है, ये डर हमेशा सताता ।।  

कुछ मानव दानव बन बैठे है, तो कुछ फ़रिश्ते । कही सौदा साँसों का है, तो कही दवाओं का ।
हुई है इंसानियत आज शर्मशार, पर ये वक़्त है लोगों की जान बचाने का ।।

हे भगवान! क्या तुझे सुनाई नहीं देता, अपने बच्चों का रोना ।
क्यू हो इतने कठोर बने, अब आके, इस उलझन को सुलझाना ।।

कतार है कुछ यु लम्बी, मानो वक़्त है भारी ।
संकट की ये घड़ी है, हिम्मत और हौशलें की है अब बारी ।।  

हर रोज़ इक नयी आशा के साथ हु जागता, की आज एक नया सवेरा हो ।
फिर से खिल उठे ये चमन, दूर इस जग से अँधियारा हो ।।  

Bishwanath Jha

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